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Mar jane ko jee chahta hai

आज फिर कही मर जाने को जी चाहता है,
आज फिर किसी को #रुला जाने को जी #चाहता है...
#थक गया हूँ यारों दुनिया के #सितमों से,
आज फिर कही #डूब जाने को जी #चाहता है..

बना लिए कितने #रिश्ते दुनिया के भँवर में,
आज फिर उन #रिश्तों को #छोड़ जाने को जी चाहता है...
देख लिए बहुत अब #अपने परायों के मँजर,
उन #मँजर को #भूल कही सो जाने को जी #चाहता है...
नही कर सकता मैं #जिन्दगी का ओर #सफ़र,
अब तो #खुदा की रहमत में #चले जाने को #जी चाहता है... :(

Zindagi tera kya svaal hai ?

अय #ज़िन्दगी तू ही बता, तेरा क्या हवाल है
गर पूंछना है तो तू पूंछ ले, तेरा क्या सवाल है
घर से चला था तो सिर्फ कपडे थे तन पर,
खोया है क्या तूने भला, इतना क्या मलाल है
खुद ही देखे थे वो सपने जो न थे तेरे कभी,
नादानियां थीं तेरी ही, औरों की क्या मज़ाल है
क्यों बना डाले थे तूने मोह के ये जाल इतने,
फंस गयी तू खुद ही उनमें, इसमें क्या बवाल है
तू अकेली नहीं है पागल दुनिया में अय जिंदगी,
मिल जाएंगी हज़ारों, भला इनका क्या अकाल है
सच है कि न जीते हम जिंदगी हिसाब से,
#गुनाह तो अपना है भला औरों से क्या मलाल है

Dard koi nahi samajhta

क्या गुज़री है दिल पर, कौन समझता है
किसी और का दर्द, भला कौन समझता है
खो गए गमों की भीड़ में मेरा #नसीब था,
किसी और के अज़ाब, भला कौन समझता है
मेरा नाज़ुक सा #दिल रोने लगता है यूं ही,
उस मूर्ख का यूं रोना, भला कौन समझता है
सब जीते मरते हैं यहाँ सिर्फ अपने लिये
यहाँ औरों के हालात, भला कौन समझता है...

Mera Khwab Tod Diya

क्या कहूँ उन #लोगों को, जिन्होंने मेरा #साथ छोड़ दिया,
क्यूँ छोटी सी #बात पर उन्होंने, मेरा #हाथ छोड़ दिया...
#ख़्बाहिश थी कि निभाऊँगा उनसे #दोस्ती ता-उम्र,
पर उन्होंने पहली #मुलाकात में ही मेरा #ख़्बाव तोड़ दिया...

कैसे समझाऊँ अपने अब इस #दिल के #तार को,
उन्होंने तो मेरे #दिल का तार ही मरोड़ दिया..
क्या करूँ, कैसे करूँ कुछ #समझ नहीं आता,
मैंने भी अब #किस्मत को अपनी, अपने #हालात पर छोड़ दिया...

Soch ke Afsane kal ke

कर लिए जतन इतने, अपने आप को बदल के
फिर भी गुज़री #ज़िन्दगी, बस आसुओं में ढल के
यूं ही चलती रही ज़िंदगी ग़मों का कारवां लेकर,
पर न आया कोई रहगुज़र, न देखा साथ चल के
दिखता है दूर से तो लगता है कोई अपना है, मगर
जब गुज़रता है क़रीब से, रह जाते हैं हाथ मल के
जीना था जब अकेले ही तो फिर भीड़ क्यों दे दी,
मिलता है क्या तुझको खुदा, इंसान को यूं छल के
उम्र गुज़र गयी मोहब्बत के बिन जीते जीते,
अब गुजरेंगी सुबहो शाम, सोच कर अफ़साने कल के...