Log Pathar Dil Kehte Rhe
आँखों के समंदर में कभी उतर कर न देखा,
#दिल के #दरिया में कभी बहकर न देखा...
सब कहते रहे मुझको कि पत्थर #दिल हूँ मैं,
मोम का बना था मैं, मगर किसी ने छूकर न देखा...
आँखों के समंदर में कभी उतर कर न देखा,
#दिल के #दरिया में कभी बहकर न देखा...
सब कहते रहे मुझको कि पत्थर #दिल हूँ मैं,
मोम का बना था मैं, मगर किसी ने छूकर न देखा...
उनकी यादें ऐसी कि, दिल से मिटा भी नहीं सकते
दिल मांगता है वही, जो उसे दिला भी नहीं सकते
वक़्त ने कुछ इस कदर सिल दी है हमारी ज़ुबान,
कि दिल की चीखें, किसी को सुना भी नहीं सकते
अफ़सोस होता है अपनी इस बेबस ज़िन्दगी पर,
कि दास्तान ए ग़म, किसी को बता भी नहीं सकते
सोते हैं चैन से वो क्या जानें आसमां का आलम,
कितना चिढ़ाते हैं सितारे, हम जता भी नहीं सकते
बेवफाओं की नगरी है ये ज़रा बच के रहिये,
गर घोंप दे खंज़र कोई, खुद को बचा भी नहीं सकते...
ऐ #खुदा तूने एक पल खुशी का दिया तो होता,
कभी मेरे #सपनो को सच होने दिया तो होता...
निभाता मैं भी खुशी खुशी अपने रिश्ते वादे,
कभी किसी का मुझे बनने दिया तो होता...
होती है मस्क्कतें, मिलता है कितना #दर्द,
कभी मेरे #ख्बावों को तूने #सजने तो दिया होता...
फिरता हूँ अकेला बेगानों की तरह गली चौराहों पे,
कभी किसी की बगिया का फूल बनने दिया तो होता...
आए थे वो भी एक बार #मोहब्बत का #पैगाम लेकर,
मगर #इज़हार के लिए #उनके, मुझे #जिन्दा किया तो होता...
न कुछ भी उनका क़ुसूर था, न कुछ मेरा क़ुसूर था
पर जब देखा दिल में झांक कर, वो तो मेरा गुरूर था
वो हमेशा मेरे क़रीब थे, कभी मैं भी न उनसे दूर था
दे दिया बस दिलों न धोखा, ये सारा उनका क़ुसूर था
न #दिल की गाँठ खोली न दर्द देखा आँखों में उनकी,
मैंने मुद्दत यूं ही गुज़ार दी, मस्ती में इतना चूर था
आँखों को खोल कर रखो जाने कब दीदार हो जाएँ,
बाद में मत कहना कि, ये नज़रों का क़ुसूर था...
मेरा भी साथ देता कोई, तो सिमिट जातीं दूरियां
इस ज़िन्दगी के सफर में, न होती यूं मज़बूरियां
मुश्किलों का मेला है बस ये ज़िन्दगी का कारवां,
नज़दीक रह कर भी बना लीं, हर आदमी ने दूरियां
याद आई मंज़िलों की अधूरी दास्तां कुछ इस कदर,
कि दिल के दामन से लिपट कर, रो पड़ीं मज़बूरियां
जो ख्वाहिशें पाली थी दिल ने फ़िज़ूल में ही ,
उनको भी यूं ही खा गयीं, ये लाचारियां ये मज़बूरियां