क्या क्या खोया क्या पाया, हमको कुछ भी याद नहीं !
किसने अरमानों को कुचला, हमको कुछ भी याद नहीं !
उतर गए थे हम तो यूं ही इस दुनिया के सागर में,
किसने बीच भंवर में छोड़ा, ये हमको कुछ भी याद नहीं !
इस कदर हुए कुछ ग़ाफ़िल हम इस परदेस में आकर,
कब कैसे अपना घर हम भूले, हमको कुछ भी याद नहीं !
किसे बताएं किस किस ने लूटा चैन हमारे जीवन का,
इस दिल को किसने कैसे नोंचा, हमको कुछ भी याद नहीं !
जो उलझ गए थे ताने बाने कभी न सुलझा पाये हम,
कहाँ कहाँ पर गांठ पड़ गयीं, ये हमको कुछ भी याद नहीं !
फरेबियों को तो हम, अपना समझ बैठे
हक़ीक़त को तो हम, सपना समझ बैठे
मुकद्दर कहें कि वक़्त की शरारत कहें,
कि पत्थर को हम, #ज़िन्दगी समझ बैठे
दुनिया की चालों से न हुए बावस्ता हम,
और उनको हम, अपना #खुदा समझ बैठे
दाद देते हैं हम खुद की अक्ल को ,
कि क़ातिलों को हम, फरिश्ता समझ बैठे
लोग दिल में घुस कर, चले आते हैं क्यों,
फिर #तमन्ना जगा कर, चले जाते हैं क्यों...
जब साथ जीने की जगती है थोड़ी आशा,
वो तभी #दिल तोड़ कर, चले जाते हैं क्यों...
करते हैं भरोसा जान से ज्यादा जिन पर
वो छोड़ कर ज़रुरत पर, चले जाते हैं क्यों...
मुखौटे चढ़ा कर दिखते हैं वो शरीफ़ज़ादे,
पर वो #नसीब जला कर, चले जाते हैं क्यों...
जिन्हें उम्र भर समझते रहे अपना,
वक़्त बेवक़्त वो रुला कर, चले जाते हैं क्यों !!!
जुदा तुझसे हो के आधा सा मैं हो गया हूँ
ना निभाया हुआ #वादा सा मैं हो गया हूँ
तेरे बिन टुटा हुआ #इरादा सा मैं हो गया हूँ
मरता रहा तुझे पाने के लिए पर नाकाम रहा
तेरे बिन बदला हुआ क़ायदा सा मैं हो गया हूँ ...
खुद को मैं भूल गया तुझे याद करते करते
गवा दिया सब कुछ तुझे प्यार करते करते
फिर भी मेरे हो के तुम मुझसे खफा हो गए
साँस हम लेने लगे थे तुम पे ही मरते मरते
अधूरा सा हो गया हूँ तुमसे दूर रहते रहते
तड़फ रहा हूँ तुम्हारा इंतज़ार करते करते...