कभी जलते थे दीप खुशियों के, अब अँधेरा हो गया,
अब तो किसी से प्यार करना, जी का झमेला हो गया !
वो चाहता है बदला चुकाना मेरी नेंमतों का दौलत से,
क्या लौटा सकेगा मुझको, जो सम्मान मेरा खो गया !
ये नादान दिल ना देख पाया उसमें उमड़ते ज़हर को,
जब तक समझ आता उसे, वो बेहद विषैला हो गया !
किस ख़ता की ये सजा है बस सोच कर हम हैरान हैं,
इतना पता तो है हमें कि, वो दुश्मन का चेला हो गया !
यूं तो तराने #प्यार के कभी हमने भी गाए थे यारो
पर दुनिया के इस रंग में, दिल फिर से अकेला हो गया !
क्यों चले आते हैं लोग, यूं ही जी जलाने के लिए !
कर के खुशियों का वादा, उम्र भर रुलाने के लिए !
खुद ही तो पास आते हैं दिलरुबा बन कर वो तो,
फिर कौन कहता है उन से, दूरियां बढ़ाने के लिए !
निभाते हैं कुछ लोग तो प्यार का बंधन उम्र भर,
पर कुछ लोग बनते हैं मीत, मतलब बनाने के लिए !
क्या जानेगा भला वो अश्कों की कीमत,
आता है जो बाज़ार में, धंधा ज़माने के लिए !
मुझे तो हर तरफ, सिर्फ अँधेरा नज़र आता है,
ज़िंदगी का हर रंग, अब बदरंग नज़र आता है !
कभी गुज़रती थी सुबह ओ शाम बहारों में जहां,
अब वो गुलशन भी, मुझे वीरान नज़र आता है !
तसल्लियों के भरोसे कैसे जीते हैं लोग आखिर,
हमें तो हर पल, ये जमाना बेदर्द नज़र आता है !
ये दिल्लगी भी जाने क्या गुल खिलाती है यारो,
अच्छा भला सा आदमी, पागल सा नज़र आता है !
कितना भरा है #ज़हर दुनिया के लोगों में,
जब निकलता है वो, आदमी शैतान नज़र आता है !
Likhun kuchh aaj yeh waqt ka takaza hai,
Mere #Dil ka dard abhi taaza taaza hai,
Gir padte hain mere aansu mere hi kaagaz par
Lagta hai kalam mein syahi ka dard zyada hai.