दुनिया में किसी का कोई, ग़म बंटाने नहीं आता,
कोई लफ़्ज़ों का मरहम भी, अब लगाने नहीं आता !
बाद मरने के निकल आते हैं जाने कितने रिश्ते,
अफ़सोस कोई जीते जी, रिश्ता निभाने नहीं आता !
दोस्ती ही काम आती है #ज़िन्दगी में एक हद तक,
वरना तो कोई अपना, झलक दिखलाने नहीं आता!
दूर वालों से भला क्या गिला शिकवा करें हम
अब तो पडोसी भी, अपना फ़र्ज़ निभाने नहीं आता !!!
न पूछो कि ज़िन्दगी ने, कितना रुलाया हमको,
कैसे खास अपनों ने, जी भर के सताया हमको !
हमने तो की #मोहब्बत बे इंतिहां सब से मगर,
यारों ने फूल बता कर, काँटों पे चलाया हमको !
छलों व प्रपंचों की दुनिया में जी तो लिए मगर,
लोगों के गिरे ज़मीर ने, ताउम्र सताया हमको !
कैसे बदल लेते हैं लोग रंग गिरगिट की तरह,
इस मतलबी जमाने ने, हर रंग दिखाया हमको !
क्या करें मज़बूर हैं हम अपनी फ़ितरत से,
न जाने इस आदत ने, कब कब रुलाया हमको !!!
उनका ख़याल दिल से, हम मिटा न पाए,
बहुत चाहा भूलना मगर, हम भुला न पाए !
उनकी जफ़ाओं का है याद हमें हर लम्हां,
मगर #मोहब्बत की शमा, हम बुझा न पाए !
उनके चेहरे की वो हंसी याद है अब तलक,
मगर अपना बुझा चेहरा, हम दिखा न पाए !
गर नसीब है ऐसा ही तो क्या दोष दें उनको,
दोष अपना है कि #रिश्ता, हम निभा न पाए !
बड़ा ही घमंड था दिलों को पढ़ने का हमें ,
मगर पता उनके दिल का, हम लगा न पाए !