मुकद्दर लिखने वाले, तूने ये क्या काम कर दिया
तूने दुनिया के सारे #दर्द को, मेरे ही नाम कर दिया #तक़दीर में लिख दिया किसी और का नाम तूने,
और इस #ज़िन्दगी को, किसी और के नाम कर दिया
न समझ सका मैं तेरी बाज़ीगरी आज तक मौला,
तूने अच्छी भली सी ज़िन्दगी को, नाकाम कर दिया
क्या मिलता है तुझको किसी का #दिल दुखा कर,
खुद ही नाम दे कर हमें, फिर क्यों बेनाम कर दिया...
मैं सवालों जवाबों से तंग आ गया हूँ
जज़्बात की चुभन से तंग आ गया हूँ
ज़िन्दगी के फ़साने छोड़ आया हूँ पीछे
मैं ज़माने के कुढंगों से तंग आ गया हूँ
आखिर खुशियों की रंगोली कैसे सजाऊँ
मैं मिलावट के रंगों से तंग आ गया हूँ
कुछ सच्चा नहीं सब दिखावा है दोस्तो
इस फरेबों की दुनिया से तंग आ गया हूँ
खून के रिश्ते भी हैं अपने सफर में मगन
मैं अकेला इन खिज़ाओं से तंग आ गया हूँ
एक अजीब दास्तान है मेरे सफरनामे की
वहां से चल कर यहां तक पहुँच पाने की
कभी तो किस्मत ने साथ छोड़ा रस्ते में
तो कभी रंग लायी साजिश इस ज़माने की
लोग उतने ही दूर होते गए हमें छोड़ कर
जितनी कोशिश की हमने उनको मनाने की
सब को फ़िक्र थी सिर्फ अपने ही सफर की
न की किसी ने मेहर मुझे मंज़िल बताने की
अकेला ही चला हूँ मैं अंजान राहों पे
न थी किसी के पास फुर्सत मेरे साथ आने की