दुनिया के दिए ज़ख्मों के, निशान अभी बाकी हैं,
हम जी रहे हैं इसलिए कि, अरमान अभी बाकी हैं !
देख कर हमें बदल देते हैं लोग अपना रास्ता अब,
शायद आते हैं वो ये देखने कि, प्राण अभी बाकी हैं !
छोड़ देते ये शहर ये गलियां सदा के लिए हम तो,
पर क्या करें कुछ लोगों के, अहसान अभी बाकी हैं !
वैसे लुट तो चुके हैं हम इस दुनिया के बाजार में,
पर घर में मेरी यादों के कुछ, सामान अभी बाकी हैं !
देखा किया जो मैंने, हर आँख में नमी थी,
मगर मेरी आँख तो, कहीं और ही जमी थी !
हर कोई नज़र आ रहा था मेरे ज़नाज़े में,
मगर जो दिल के पास था, उसकी कमी थी !
ऐसे वक़्त में तो दुश्मन भी पिघल जाता है,
आखिर मेरे नसीब में ही, कौन सी कमी थी !
शायद न पिघल पायी कोशिशों के बाद भी,
जो बर्फ अदावत की, उसके सीने में जमी थी !
न थी तमन्ना कि दिल दुखाऊँ किसी का मैं,
मगर #ज़िन्दगी में मेरी तो, बस रस्सा कशी थी !
कुछ कहने की कुछ सुनने की, हिम्मत न रही अब,
यूं हर किसी से सर खपाने की, हिम्मत न रही अब !
हम भी बदल गए हैं तो वो भी न रहे बिल्कुल वैसे,
सच तो ये है कि उनको भी, मेरी ज़रुरत न रही अब !
अब फ़ुरसत ही नहीं कि कभी उनको याद कर लें,
ख़ैर उनको भी हमारे जैसों से, #मोहब्बत न रही अब !
देखना था जो तमाशा सो देख लिया इस जमाने ने,
मैं तो भूल गया सब कुछ, कोई #नफ़रत न रही अब !
सोचता हूँ कि जी लूँ कुछ पल और #ज़िंदगी के बस ,
यूं भी वक़्त का मुंह चिढ़ाने की, फ़ितरत न रही अब !
न बची जीने की चाहत तो मौत का सामान ढूंढता है,
क्या हुआ है दिल को कि कफ़न की दुकान ढूंढता है
समझाता हूँ बहुत कि जी ले आज के युग में भी थोड़ा
मगर वो है कि बस अपने अतीत के निशान ढूंढता है
मैं अब कहाँ से लाऊं वो निश्छल प्यार वो अटूट रिश्ते
बस वो है कि हर सख़्श में सत्य और ईमान ढूंढता है
दिखाई पड़ते हैं उसे दुनिया में न जाने कितने हीअपने
मगर वो तो हर किसी में अपने लिए सम्मान ढूंढता है
मूर्ख है "मिश्र" न समझा आज के रिश्तों की हक़ीक़त
अब रिश्तों से मुक्ति पाने को आदमी इल्ज़ाम ढूंढता है...
मैं किसी के दर पर, सर झुकाने नहीं जाता !
मैं महफिलों में, अपना दर्द सुनाने नहीं जाता !
लेते हैं मज़े लोग औरों के बदहाल पर दोस्तो,
मैं किसी को, अपने ज़ख्म दिखाने नहीं जाता !