यूं ज़िन्दगी को, समझने से तुम्हें क्या मिलेगा,
उस से खामखा, उलझने से तुम्हें क्या मिलेगा !
ख़ुशी से जी लो जितना भी लिखा है नसीब में,
यूं ही दिल में, गुबार भरने से तुम्हें क्या मिलेगा !
जो दिया है ख़ुदा ने बस सब्र कर उतने पे यार,
यूं हर चीज़ पर, मर मिटने से तुम्हें क्या मिलेगा !
दुनिया में वैसे भी क्या कमी है ग़मों की दोस्त,
अपने आप से ही, यूं लड़ने से तुम्हें क्या मिलेगा !
मिल जाये यूं ही सब तो ख़ुदा की क्या ज़रुरत,
सोचो, उसके खिलाफ जाने से तुम्हें क्या मिलेगा !
गर आम मीठे है तो जी भर के खा जाओ दोस्त ,
यूं ही बेकार में, उन्हें गिनने से तुम्हें क्या मिलेगा !

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