ज़िन्दगी से क्या गिला, हमें ख़्वाहिशों ने मार डाला,
पिला कर जाम उल्फ़त का, साजिशों ने मार डाला !
एक पल भी न जी सके यारो अपनों की बेरुख़ी में,
भला दुश्मनों से क्या गिला, हमें दोस्तों ने मार डाला!
घुसते रहे हम भीड़ में बस मोहब्बतों की तलाश में,
नफरतों से क्या गिला, हमें मोहब्बतों ने मार डाला!
हमें तो वक़्त के तूफ़ान ने पटक डाला दलदलों में,
यूं दलदलों का दोष क्या, हमें बुलंदियों ने मार डाला !
हम कर के यक़ीन यारों पर पछताते रहे उम्र भर,
उनके फरेब से क्या गिला, हमें आदतों ने मार डाला !
आये थे इस शहर में कमाने की ललक लेकर के,
शहर ने सब कुछ दिया पर, हमें बंदिशों ने मार डाला !
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