किसी की ज़िन्दगी, किसी को मिटाने का क्या हक़ है,
खुद की ख़ुशी के लिए, औरों को रुलाने का क्या हक़ है !
कोई अपने सफर में गिरे या उठे ये तो है उसकी मर्ज़ी,
पर दौराने सफर, किसी और को गिराने का क्या हक़ है !
कोई न दे किसी को दौलत अपनी तो कोई बात नहीं,
मगर उसे किसी और की, दौलत चुराने का क्या हक़ है !
न चाहिए हमसफ़र तो अकेले ही अकेले चलो दोस्त,
पर किसी का किसी को, रस्ते से हटाने का क्या हक़ है !
कोई छूता है ऊंचाइयां तो किसी को क्या गिला दोस्तो,
पर उसका औरों के सर पर, पांव ज़माने का क्या हक़ है !!!