आधी उम्र तो, ख्वाहिशों के नाम हो गयी
जो बची थी वो, नफरतों के नाम हो गयी
मोहब्बतों के लिये वक़्त ही न बचा अब,
देखते ही देखते, ये ज़िंदगी तमाम हो गयी
जीते रहे सिर्फ शोहरतों के लिये हम, मगर,
फरेबी दुनिया में, ज़िंदगी बदनाम हो गयी
वक़्त सरक गया हाथों से रेत की तरह "मिश्र",
होश आया जब तक, ज़िंदगी की शाम हो गयी