ज़िंदगी की पढ़ाई कभी किताबों से नहीं होती,
उसे तो दुनिया में जी कर ही पढ़ा जाता है
कहीं कोई पढाई नहीं हुआ करती संस्करों की,
उन्हें तो घर की आब ओ हवा से गढ़ा जाता है
सच में मिलावट की ज़रूरत नहीं हुआ करती,
पर झूठ को फरेबों की चाशनी से गढ़ा जाता है
कितना बदतर हाल हो गया है दुनिया का “मिश्र",
ख़ता के बदले बे-ख़ता को तमाचा जड़ा जाता है...

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