ज़िंदगी के मैंने न जाने कितने रंग देखे हैं
कभी गैरों तो कभी अपनों के संग देखे हैं
गैरों से क्या गिला वो तो गैर ठहरे,
ज़िंदगी में अपनों के बड़े अजब ढंग देखे हैं
उनके लिये मरा तो बड़ा अज़ीज़ था मैं,
खुद के लिये किया तो चेहरे बदरंग देखे हैं
ये दुनिया सिर्फ स्वार्थों की है दोस्तो,
मैंने रिश्तों के टूटने के हज़ार प्रसंग देखे हैं.....

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