मेरी तो ज़िन्दगी का, बस इतना फ़साना है
राहों में कांटे हैं मगर, कुछ दूर और जाना है
कैसे हैं लोग कैसी है इस दुनिया की रिवाज़ें,
ज़ख़्मी है नशेमन, मुझे फिर भी मुस्कराना है
महफ़िल में रंग जमाना अब मुश्किल है यारो,
क्योंकि मेरे गीत अधूरे, और संगीत पुराना है
उम्मीद नहीं कि मिल भी पायेगी मंज़िल मुझे,
रहबर भी न कोई, न आगे का कुछ ठिकाना है
खुदाया कुछ मोहलत और दे दे ज़िन्दगी को,
अभी तो ज़माने को, कुछ और सितम ढाना है...

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