जीना चाहा तो ज़िन्दगी, दूर होती चली गयी !
कमाल ये कि हर शै, मजबूर होती चली गयी !
चाहने न चाहने से कुछ भी नहीं हुआ करता,
जिस चीज़ को भी चाहा, दूर होती चली गयी !
समझते थे हम दुनिया #महफ़िल है खुशियों की,
पर वक़्त के साथ वो भी, क्रूर होती चली गयी !
पागल थे हर किसी पर जान छिड़कते रहे हम,
पर दिल की मज़बूरी, मजबूर होती चली गयी !
अपनाया जिसने चाहा मतलब के लिए,
हमारे लिए तो #दोस्ती, दस्तूर होती चली गयी !