यहां किसी को, किसी में भी दिलचस्पी नहीं,
लोगों के मुखड़ों पर, वो बात वो मस्ती नहीं !
अब याद आते हैं अपने वो गुज़रे हुए ज़माने,
मगर उधर भी, वो बस्ती अब वो बस्ती नहीं !
बड़ा ही अजीब दरिया है ये #ज़िन्दगी भी यारो,
यहां पतवार तो हैं, लेकिन कोई भी कश्ती नहीं !
इस शहर में न बना पाये किसी को भी अपना,
हूँ तो मैं #मुसाफिर ही, मेरी तो कोई हस्ती नहीं !
हर चीज़ नहीं है नसीबों में हर किसी के दोस्त,
ईमान छोड़ कर यहां, कोई भी चीज़ सस्ती नहीं !!!