लोग अब भी, वो पुराना राग लिए फिरते हैं
सूरज की रोशनी में, चिराग लिए फिरते हैं
इधर तो कहीं भी ठंडक नहीं मिलती यारो,
अब दिलों में भी लोग, आग लिए फिरते हैं
ढूंढते फिरते हैं लोग औरों में ख़म ही ख़म ,
पर वो ख़ुद भी ढेर सारे, दाग लिए फिरते हैं
न जमती हैं लोगों को अब ईमान की बातें,
न जाने लोग कैसा, बददिमाग लिए फिरते हैं
ज़रा बच के ही रहना भोली सूरतों से "मिश्र",
अरे यही तो आस्तीनों में, नाग लिए फिरते हैं