कभी न कभी तो, ये वक़्त भी आना ही था,
जो आया था उसे तो, एक दिन जाना ही था !
क्यों लगा बैठे थे तुम एक मुसाफिर से दिल,
उसे तो अपनी, #मंज़िल की ओर जाना ही था !
होती नहीं ये दूरियां राहों की असीम यारो,
कभी न कभी तो छोर, उनका आना ही था !
कुछ भी न साथ लेकर गया वो जाने वाला,
उसे सब कुछ तो इधर, छोड़ जाना ही था !
बूढ़े दरख़्तों से आँधियों की भला क्या यारी,
कभी न कभी तो जड़ से, उखड जाना ही था !
क्यों ग़मज़दा हो देख अपने गुलशन को दोस्त,
इसमें कभी न कभी तो, पतझड़ आना ही था !!!