शोषण होता मज़दूरों का, किसी को इसका ध्यान नहीं
उनकी कीमत कितनी है, किसी को इसका ज्ञान नहीं
ठेकेदार और मालिक मिलकर, उनका शोषण करते हैं
खुद लाखों लाख कमा कर बस, अपना पोषण करते हैं
सुबह से लेकर शाम तलक, वो मेहनत करते रहते हैं
क्या उनका हिस्सा मिलता है, या यूं ही खटते रहते हैं
मालिक की अथाह कमाई में,मेहनत का कितना हिस्सा है
इसकी गणना कोई न करता,ये हर मज़दूर का किस्सा है
जिस विकास की बात कर रहे, वो मज़दूरों की थाती है
नेतागण जो डींग हांकते, वो कभी न हमको भाती है