जिन्दगी की कशमकश ने, चाहतों को मार डाला,
धूप की इस तपिश ने, ठंडी हवाओं को मार डाला !
खुशियों की तमन्ना लिए आये थे इस शहर में हम,
मगर इसकी बेरुखी ने, सारे ख़्वाबों को मार डाला,
कितनी बदल गयी ये दुनिया समझ आ गया अब,
मतलब निकलते ही, लोगों ने रिश्तों को मार डाला !
कहाँ हैं वो दिल जिनमें कभी खुशियां ही खुशियां थीं,
अब तो नफरतों ने मिल के, मोहब्बतों को मार डाला !
इस लम्बी उम्र में जाने क्या क्या देख डाला,
खुद अपनों ने गैरों से मिल के, अपनों को मार डाला !

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