मेरे अरमानों की, होली जला कर चले गये
मेरी वफा को वो, ठोकर लगा कर चले गये
मैने हज़ार मिन्नतें कीं उनसे,
पर वो नहीं पिघले, हाथ छुड़ा कर चले गये

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