मैं तो बसता हूँ उनकी साँसों में मगर,
वो मंदिरों मस्जिदों में खोजते फिरते हैं !
मैं मिलता हूँ सिर्फ इंसानियत में मगर,
लोग हैं कि मज़हबों में खोजते फिरते हैं !
मैं तो एक था एक ही रहूँगा सदा मगर,
लोग तो मुझे टुकड़ों में खोजते फिरते हैं !
हर जगह हूँ मैं मगर देखता कोई नहीं,
मैं पास हूँ मगर वो दूर खोजते फिरते हैं !
न करते हैं याद मेरी वो अच्छे दिनों में,
जब आते हैं बुरे दिन तो खोजते फिरते हैं !
कर दिया भेंट हर पल नफरतों को दोस्तो,
अब बिखरे हुए रिश्तों को खोजते फिरते हैं !!!

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