जो चलाते हैं खंज़र, भला उनका क्या जाता है ,
देख कर दर्द औरों का, उनको तो मज़ा आता है !
नहीं ढूढता हल कोई किसी की मुश्किलों का,
इस शहर में लोगों को, बस खेल करना आता है !
नफरतें, हिकारतें जम चुकी हैं दिलों में अब तो,
बस ज़रा सी बात पर ही, बवाल करना आता है !
बेग़ैरती तो बन चुकी है ज़िन्दगी का एक हिस्सा,
इसी के चलते लोगों को, कमाल करना आता है !
दौलत के नशे में कुछ भी कर गुज़रता है आदमी,
इसी के बल पे उसे, सच को झूठ करना आता है !