मेरी उलझनों मे इस कदर ना पड़ना ऐ दोस्त,
कहीं उसे सुलझाने मे तुम्हे भी इश्क का रोग ना हो जाए।
मेरी तो हर रात कटती है यूँ ही जागते हुए,
कही फिर हर रात तुम्हे भी यूँ ही तडपाये ।।
मेरी उलझनों मे इस कदर ना पड़ना ऐ दोस्त,
कहीं उसे सुलझाने मे तुम्हे भी इश्क का रोग ना हो जाए।
मेरी तो हर रात कटती है यूँ ही जागते हुए,
कही फिर हर रात तुम्हे भी यूँ ही तडपाये ।।