गर सताएं उनकी यादें, तो क्या करूँ,
गर चाहूँ उनसे मिलना, तो क्या करूँ!
हो सकती है मुलाक़ात ख्वाबों में बस,
मगर न सोएं मेरी आँखें, तो क्या करूँ!
कहते हैं लोग कि खुश रहा करो दोस्त,
मगर न मचले मेरा दिल, तो क्या करूँ!
कहते हो कि भूल जाओ गुज़रा ज़माना,
पर न निकलें दिल से बातें, तो क्या करूँ!
अरमां तो हैं मेरे भी कि खुश रहा जाये,
मगर दिल से न निकलें ग़म, तो क्या करूँ!
ये चाहत है मेरी कि न हो दुश्मनी उनसे,
मगर न बदले उनकी, आदत तो क्या करूँ!!!
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