तेरे साथ कितनी थी हसीन ज़िंदगी
अब तेरे बिन है ये एक सज़ा ज़िंदगी
तेरा साथ था कितने मज़े में थे हम
अब तेरे बिन है बड़ी बेमज़ा ज़िंदगी
तूने ही संवारा था कभी जतन से इसे
खुद ही क्यों उज़ाड़ दी बेवजह ज़िंदगी
हमने तो तुझ में हमेशा ही देखा ख़ुदा
उसने ही बना के क्यों मिटा दी ज़िंदगी ?