क्यों लिखते हो अय दोस्त, ये तराने मोहब्बतों के ,
जब कि दिखते हैं हर तरफ, अब साये नफ़रतों के !

तेरे अहसासे दिल को, भला कोंन समझेगा दोस्त,
जब कि यहाँ उठते हैं रोज़ अब, जनाज़े हसरतों के !

अब भूल जाओ यारो, वो खुशियों वो उमंगों के दिन,
अब तो दिखते हैं हर कदम पर, नज़ारे वहशतों के !

अब न कोई भी महफूज़ है, इस दुनिया के मेले में,
अब तो घुस चुके हैं हर दिल में, अंगारे दहसतों के !

न होइए मायूस यूं, ये तो दुनिया का चलन है 'मिश्र',
यूं ही मिलते रहेंगे हर तरफ, ये फ़साने हरकतों के !

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