न पूंछो हमसे कि, सहने की हद कितनी है
कर ले ज़फ़ा तू भी, करने की हद जितनी है
बेवफाओं को खूब देखा है क़रीने से हमने,
बस देखना बाक़ी है कि, तेरी हद कितनी है
अब हम तो घुस गये हैं ज़फ़ा के दरिया में,
ये भी देख लेते हैं कि, इसकी हद कितनी है
कोई भी ग़म नहीं उनकी बेवफाई का हमें,
ये मालुम है हमको कि, अपनी हद कितनी है