ये शीशा ये सपना ये ज़िंदगी की डोर
कब टूट जाएं ये किसको पता है
मोहब्बत के दरिया में ज़फ़ा की कस्ती
कब डूब जाये ये किसको पता है
झूठ की नींव पर बहुत बनते हैं रिश्ते
कब टूट जायें ये किसको पता है
छोटी सी ज़िंदगी में भर दो हर खुशी
कब रूठ जाये ये किसको पता है
दिल में बसा लो अपने बुज़ुर्गों का साया
साथ कब छूट जाये किसको पता है...

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