यूं बेसबब इतनी ज़िल्लतें, उठाते ही क्यों हो
यूं आँखों को हसीं सपने, दिखाते ही क्यों हो
गर आ के चले जाना ही है, फितरत तुम्हारी
तो यूं ज़िन्दगी में किसी के, आते ही क्यों हो
जब देना ही मात्र धोखा है, मक़सद तुम्हारा
तो फिर यूं रो-रो के रिश्ते, बनाते ही क्यों हो
कर देती जुबाँ ही जब, खुलासा राज़ दिल के
तो फिर यूं चेहरे पे मुखौटे, लगाते ही क्यों हो
न देखता है कोई भी अब, मुसीबत किसी की
तो हर किसी को दर्द अपने, बताते ही क्यों हो
जहाँ मिलती हैं ठोकरें ही, हर कदम पे 'मिश्र'
तो उस डगर पे कदम अपने, बढ़ाते ही क्यों हो
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