गुलशन में लगी आगों को, हम बुझाएं कैसे,
इन #मोहब्बत के परिंदों को, हम बचाएं कैसे !
आँगन में लगे होते तो उखाड़ देते हम यारो,
मगर #दिल में उगे ख़ारों को, हम हटाएँ कैसे !
होता अँधेरा अगर घर में तो जला देते शमा,
पर दिल में भरे अंधेरों को, हम मिटायें कैसे !
न समझा कभी जिसने #नफ़रत के सिवा कुछ,
उनके दिल में मोहब्बतों को, हम बसाएं कैसे !
अब न मिलती इंसानियत ढूढ़ने से कहीं भी,
अब लोगों के सोये ज़ज़्बों को, हम जगाएं कैसे !
अपनी बुलंदियों के गुरूर में ग़ाफ़िल हैं "मिश्र",
फिर जमीं से उनके रिश्तों को, हम बताएं कैसे !