रिश्तों का महल बनाने में, उम्र गुजर जाती है
पर बेरुखी की आँधी, इसे झट से निगल जाती है
मेहनत से बने इस महल को, यूं न ढहने दीजिये
आंधियां तो आती हैं, इसे निशाना न बनने दीजिये
रिश्तों का महल बनाने में, उम्र गुजर जाती है
पर बेरुखी की आँधी, इसे झट से निगल जाती है
मेहनत से बने इस महल को, यूं न ढहने दीजिये
आंधियां तो आती हैं, इसे निशाना न बनने दीजिये