फरेबियों को तो हम, अपना समझ बैठे
हक़ीक़त को तो हम, सपना समझ बैठे
मुकद्दर कहें कि वक़्त की शरारत कहें,
कि पत्थर को हम, #ज़िन्दगी समझ बैठे
दुनिया की चालों से न हुए बावस्ता हम,
और उनको हम, अपना #खुदा समझ बैठे
दाद देते हैं हम खुद की अक्ल को ,
कि क़ातिलों को हम, फरिश्ता समझ बैठे
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