भेड़ों का इक झुण्ड है जनता, जिसकी अपनी कोई डगर नहीं
आगे की भेड़ किधर जाती है, इसकी उनको कोई खबर नहीं.
आँख मूंद बस चल पड़ती हैं, परिणाम की उनको फिक्र नहीं
यूं ही खट जाती हैं मिट जाती हैं, फिर भी उनको अक्ल नहीं.
आंख खोलकर दुनियाँ देखो,परखो,तब अनुशरण करो
ये डगर कहाँ ले जायेगी, जी भर कर पहले मनन करो
नेता के लिये ये भोली जनता, केवल मात्र एक रस्ता है
उनके लिये तुम जीवन भी देदो, उनको दिखता सस्ता है

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