जर्जर है बुनियाद, तो रंग कराने से क्या होगा,
बेज़ार है गर दिल, तो मुस्कराने से क्या होगा !
#ज़िंदगी बिता दी पर न आयी दुनियादारी हमें,
अब बूढ़े तोते को, क़ुरान पढ़ाने से क्या होगा !
बहता है जिस दिल में नफ़रतों का लावा यारो,
भला उसे हर्फ़-ए-मोहब्बत, पढ़ाने से क्या होगा !
अपने कर्मों को सुधारे वो तब तो कोई बात बने,
वर्ना उसके कुकर्मों पे, पर्दा गिराने से क्या होगा !
लिखा है जो #नसीब में, कौन टाल सकता है,
पर मरने से पहले, कफ़न मंगाने से क्या होगा !!!