अपनी ज़िन्दगी ने, कितने ही बवाल देखे हैं !
जो थे कभी अपने, उनके भी कमाल देखे हैं !
वक़्त बिगड़ते ही फेर लीं जिसने नज़र यारो,
इन आँखों ने कभी, उसके भी हवाल देखे हैं !
न रही इन आँखों में तलब दीदार की अब,
पर क़रीब से कभी, हमने भी जमाल देखे हैं !
न हुए कभी पूरे जो देखे थे ख्वाब हमने भी,
हमने हसीनों के, नखरे भी बेमिशाल देखे हैं !
दिल में उभरते हैं कभी उल्फत के उजाले,
मगर नफ़रत, के अँधेरे भी बेमिशाल देखे हैं !
न पड़ो "मिश्र" इस मोहब्बत के पचड़े में तुम,
हमने दिवानों के, चेहरे भी बदहवाल देखे हैं !!!