नफ़रत थी दिल में, तो इज़हारे प्यार क्यों कर बैठे,
#मोहब्बत के नाम पर, ज़िंदगी निसार क्यों कर बैठे !
जब छोड़ के ही भागना था बीच रस्ते से अय दोस्त,
तो फिर चलने का साथ मेरे, इक़रार क्यों कर बैठे !
जिधर देखो उधर दुश्मन ही तो दुश्मन हैं जहान में,
फिर बेताबियाँ के चलते, खुद पर वार क्यों कर बैठे !
जब पता ही था कि मंज़िलें आसान नहीं हुआ करतीं,
फिर दरम्याने सफर, दिल को बेक़रार क्यों कर बैठे !
चाहतों के मसले पे दिल को संभाल कर रखिये "मिश्र",
अरे आसमां की चाहत में, सितारों से रार क्यों कर बैठे !