खिंची चली आती हैं तितलियाँ, फूलों के क़रीब
भंवरे भी छेड़ते हैं अपनी तान, फूलों के क़रीब
भला कोंन जाता है कांटों की चुभन सहने को,
उनसे बच कर निकल जाना ही, होता है मुफीद
मुस्कराते चेहरों पर दीवानी हो जाती है दुनिया,
कोंन झांकता है भला, रोते हुए चेहरों के क़रीब
जीना है तो क्यों न मुस्करा के जीओ दोस्तो,
हो जायेगा मुरीद वो भी, जिसको कहते हो रक़ीब...

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