जब नफ़रत भरी है दिल में, तो मोहब्बत क्या करेगी,
जब चाहत है डूब मरने की, तो किस्मत क्या करेगी!
भले ही छूने का आसमाँ, रखता हो हौसला कोई भी,
पर जब काटें गला अपने ही, तो हिम्मत क्या करेगी !
अब सच से मुंह छुपाना तो, बना ली है आदत सब ने,
जब भाती है वनावट सबको, तो असलियत क्या करेगी!
तब तो न किया यक़ीन तुमने, ईश्वर की डगर पर भी,
जबकि दलदल में फंस चुके हो, तो इबादत क्या करेगी!
जाइये भूल अब तो, वो ईमान ओ धरम की बातें ,
जब चलती है दुनिया झूठ से, तो हक़ीक़त क्या करेगी !!!

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