मेरे महबूब मुझे रोज़ मिला कर.!
गैर ख़यालों में रहूं ना दुआ कर.!!
मैने हमदम है कहा तुम को.!
रहूं तन्हा ऐसी ना वफ़ा कर.!!
तुझसे मिलने की आस लिए बैठा हूँ.!
अब तो आजा यूँ ना हया कर.!!
गम हर दे अपना समझ अपना.!
हक़ दोस्ती का ऐसे ना अदा कर.!!
कब तल्क चलेगा यूँ मिलना-बिछड़ना.!
छोड़ दुनिया मेरे पास ही रहा कर.!!
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