आरजू की थी इक आशियाने की
आंधियां चल पड़ी ज़माने की
मेरे ग़म को कोई समझ ना पाया
क्योंकि मुझे आदत थी मुस्कुराने की !!!
You May Also Like






आरजू की थी इक आशियाने की
आंधियां चल पड़ी ज़माने की
मेरे ग़म को कोई समझ ना पाया
क्योंकि मुझे आदत थी मुस्कुराने की !!!