मेरा भी साथ देता कोई, तो सिमिट जातीं दूरियां
इस ज़िन्दगी के सफर में, न होती यूं मज़बूरियां
मुश्किलों का मेला है बस ये ज़िन्दगी का कारवां,
नज़दीक रह कर भी बना लीं, हर आदमी ने दूरियां
याद आई मंज़िलों की अधूरी दास्तां कुछ इस कदर,
कि दिल के दामन से लिपट कर, रो पड़ीं मज़बूरियां
जो ख्वाहिशें पाली थी दिल ने फ़िज़ूल में ही ,
उनको भी यूं ही खा गयीं, ये लाचारियां ये मज़बूरियां