कहने को अपने हैं, मगर दिल से दूर हैं वो ,
जाने कोंन से हालात हैं, क्यों मज़बूर हैं वो !
छील डाला है #दिल ज़फाओं के खंज़र से,,
भला ये कैसे कह दूँ मैं, कि बे-कसूर हैं वो !
भूल गए वो तो हमारी वफ़ाओं के दिन भी,
अब दूसरों की महफ़िल के, चश्मेनूर हैं वो !
कहाँ है वक़्त उन पर अपनों से मिलने का,
कैसे कहूँ मैं आखिर कि, मस्ती में चूर हैं वो !
बावस्ता है हर कोई उनकी हरकतों से दोस्त,
पर अफ़सोस अपनी आदतों से, मज़बूर हैं वो !!!!