मत लपेटो कफ़न से चेहरा, आँखें खुली रखने की आदत है
देखता हूँ आ जायें वो शायद, या अब भी कोई अदावत है
क्यों उतावले हो मुझे कंधों पै लादने के लिये "मिश्र",
कुछ देर और ठहर जाते, देर से आने की उनकी आदत है
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मत लपेटो कफ़न से चेहरा, आँखें खुली रखने की आदत है
देखता हूँ आ जायें वो शायद, या अब भी कोई अदावत है
क्यों उतावले हो मुझे कंधों पै लादने के लिये "मिश्र",
कुछ देर और ठहर जाते, देर से आने की उनकी आदत है