न मिली मंज़िल तो, राहें बदल डालीं
वक़्त बदला तो, निगाहें बदल डालीं
आसमानों को छूने का दम था मगर,
हमने तो अपनी, उड़ानें बदल डालीं
बड़ी शान थी कभी इस #शहर में मगर,
हालात बदले तो, महफ़िलें बदल डालीं
काँटों की चुभन इस क़दर रास आई कि,
हमने तो गुलों से, मोहब्बतें बदल डालीं
जीने के लिए और क्या चाहिए ?
हमने हँसने रोने की, आदतें बदल डालीं...