हसीन राहों को देखा तो, बस चलता चला गया,
न कुछ सोचा न समझा, बस बढ़ता चला गया !
डर गया था देख कर अपनी मंज़िल के रास्ते,
बस जिधर भीड़ देखी उधर चलता चला गया !
पता न था कि वो तो धोखे के नज़ारे थे सारे,
बे-मंज़िल के सफर में, अँधेरा बढ़ता चला गया !
अपनी राह चलता तो मिल जाती मंज़िल शायद,
पर बे-खुदी की हवाओं में बस उड़ता चला गया !
पानी है मंज़िल तो मन को न भटकने दो यारो,
रोओगे सोच कर कि, वक़्त सरकता चला गया !

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