किसी की मजबूरियों पर, हंसा मत करिये
यूं बेसबब झूठे गरूर का, नशा मत करिये
कुछ भी पता नहीं इस वक़्त की नज़रों का,
खुद को ख़ुदा समझने की, खता मत करिये
बदवक़्त कभी कह कर नहीं आता है दोस्त,
कभी खुद के बुने जालों में, फंसा मत करिये
जिसने बिठाया था जमीं से फलक पर तुम्हें,
उन्हें बन के कभी विषधर, डसा मर करिये
ज़रुरत है उल्फत की जिस बीमार दिल को,
कभी नफ़रतों से उसकी, शिफ़ा मत करिये
अजब सी दुनिया में अजब से रिश्ते हैं "मिश्र",
कभी अपनों की बात पर, गिला मत करिये
You May Also Like





