कहीं बैठ के कोने में, मैं रोना चाहता हूँ ,
ग़मों को आंसुओं से, मैं धोना चाहता हूँ !
जाने कब मिलेगी घुटन से निज़ात यारो,
पुरानी यादों को अब, मैं खोना चाहता हूँ !
कोई तो होगी तदबीर कि दुबारा जी लूँ,
जीवन के धागों को, फिर पिरोना चाहता हूँ !
बहुत ख़्वाब देखे हैं मैंने रातों में जाग कर,
अब दुनिया से बेखबर, मैं सोना चाहता हूँ !
बहुत जी लिया मैं साजिशों के बीच "मिश्र",
नई दुनिया का सपना, मैं सजोना चाहता हूँ !!!