उमड़ते हैं तूफ़ान दिल में, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ,
दर्द ही दर्द है ज़िन्दगी में, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
किस किस को दिखाऊं मैं मुकद्दर का लिखा,
न चाहा किसी ने उम्र भर, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
न देखी कभी अपनों ने मेरे दर्द की वो इन्तिहाँ,
वो कर गए ज़ख़्मी ज़िगर, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
मान कर चलता रहा मैं जिगर का टुकड़ा जिसे,
उसने बेच दी इज़्ज़त मेरी, फिर भी मैं खामोश हूँ !
चाही थी जीनी ज़िन्दगी #मोहब्बत के सहारे,
नफ़रत का अँधेरा छा गया, फिर भी मैं खामोश हूँ !

Leave a Comment