खड़ा हूँ चौराहे पे मैं, अब बताओ किधर जाऊं
ख़ुदा कर मदद मेरी, तू ही बता किधर जाऊं
हर तरफ नफरतों और फरेबों के झंडे गड़े हैं,
ख़ुदा अब तू ही बता, मैं भला कैसे उधर जाऊं
आगे कुआं है तो पीछे खाई है अब क्या करूँ,
अजीब उलझन है, भला मैं किसमें उतर जाऊं
आया तो हूँ पर इस दुनिया में जीना दूभर है,
इस से तो बेहतर है, दुनिया से कूच कर जाऊं...